Saturday, January 26, 2008

एक कविता --कन्हैया लाल नंदन जी की .........

जिंदगी में बिखर कर संवर जाओगे।
आँख से जो गिरे तो किधर जाओगे।
पानियों की कोई शक्ल होती नहीं।
जिस भी बरतन में ढालेगा ढल जाओगे।
तुम तो सिक्के हो बस उसकी टकसाल के,वो उछालेगा और तुम उछल जाओगे।
लाख बादल सही आसमानों के तुम,जिंदगी की जमीं पे बिखर जाओगे।
मैं तो गम में भी हंसकर निकल जाऊँगा।
तुम तो हंसने की कोशिश में मर जाओगे।
मशवरा है कि डर छोड़ करके जियो।
हर कदम मौत है तुम तो डर जाओगे।
एक कोशिश करो उसके होकर जियो , उसके होकर जियोगे संवर जाओगे।

2 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

एक बेहतरीन चयन
इससे आपकी काव्य
रुचि पर टिकते हैं नयन

ऐसे ही खोज खोज कर
लाते रहें रोज़
कविता की देते रहें
ऐसी ही अच्छी डोज़
बिला नागा रोज़.

Anonymous said...

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