Friday, July 25, 2008

भारतीय ऑटो रिक्शा .....कवितायें..

ज़ख्मी परिंदा !
जहरीली नागिन !
जिद्द्दी सौदागर !
बुलबुल का बच्चा!
स्पीड मेरी ज़वानी , ओवर टेक मेरा नखरा !
ब्रेक बे वफ़ा !

आखिरी गोली !

किस्मत आजमा चुका , मुक्कद्दर आजमा रहा हूँ
एक बेवफा की खातिर रिक्शा चला रहा हूँ।
साजन कोई कोई , दुश्मन हर कोई।
माँ की दुआ , जन्नत की हवा।
बाप की दुआ , जा बेटा रिक्शा चला॥
दुल्हन ही दहेज़ है॥


ए आदमी हाराम का खाना छोड़ दे ।
टायर महंगे हैं , रेस लगाना छोड़ दे ॥
जिनने अपनी माँ नूं सताया ।
सारी उमर रिक्शा ही चलाया।।

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